मध्यवर्गीय राष्ट्रवाद के लिये वह भारत की स्थायी आत्मपरिभाषा है.
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इसमें इतिहास के विभिन्न चरणों में आए राष्ट्रवाद के विभिन्न रंगों का विश्लेषण और वर्गीकरण है, जैसे आरंभिक और उन्नीसवीं सदी के मध्यकालीन योरोप में एकता और लोकप्रिय संप्रभुता (राष्ट्र लोगों से मिलकर बना होता है और इसलिए उनकी आकांक्षाएं ही सर्वोपरि हैं) के विचारों से युक्त आदिम राष्ट्रवाद, संविधानवाद के लिए चलाए गए उदारपंथी आंदोलनों से जुड़ा प्रगतिशील मध्यवर्गीय राष्ट्रवाद और अंतत: साम्राज्यवादी बुर्जुआजी का उग्र राष्ट्रवाद जिसने दुनिया को अपने बीच बांट लिया और विश्व युद्ध हुए।